डॉ. रामबली मिश्र
244
मिसिर की कुण्डलिया
तुझको इतना मानता, मत करना इंकार।
ठुकरा देना याचना, कभी नहीं सरकार।।
कभी नहीं सरकार, बैठ मेरे सिरहाने।
प्रेम सिंधु में डूब, चलें हम आज नहाने।।
कहें मिसिर कविराय,दान में मिला है मुझको।
उद्यत है यह वीर, बहुत देने को तुझको।।
Muskan khan
09-Jan-2023 06:14 PM
Nice
Reply
कृपया इस पोस्ट पर लाइक देने के लिए लॉग इन करें यहाँ क्लिक करें..
समीक्षा देने के लिए कृपया अपना ईमेल सत्यापित करें लिए लॉग इन करें click here..
कृपया लॉगिन करें यहाँ क्लिक करें..
कृपया समीक्षा देने के लिए लॉगिन करें click here..
इस पोस्ट को रिपोर्ट करने के लिए कृपया लॉगिन करें click here..
Muskan khan
09-Jan-2023 06:14 PM
Nice
Reply